पोंगल (Pongal)
पोंगल भारत का एक बड़ा त्यौहार है। यह त्यौहार जनवरी के मध्य में भारत देश के सात सात दुनिया भर के तमिल समुदायों द्वारा मनाया जाता है। पोंगल त्यौहार भारत में सबसे लोकप्रिय त्यौहारों में से एक त्यौहार है। तमिल सोर कैलेंडर के अनुसार पोंगल त्यौहार ताई महीने में आता है। यह चार दिवसयि योजना है जो सूर्य देव् को समर्पित होती है।
- पोंगल त्यौहार :- पोंगल शब्द की उत्पत्ति तमिल साहित्य से की गयी है जिसक शाब्दिक अर्थ होता है "उबालना" । पोंगल त्यौहार दक्षिण भारत का विशेषकर तमिलों का प्राचीन त्यौहार है। यह त्यौहार मूल रूप से एक फसल उत्सव है जो चावल , हल्दी व गन्ना आदि जैसे फसलों की कतई के बाद सौर विषुव के दौरान जनवरी फरवरी (तमिल कैलेंडर के हिसाब से थाई) के महीने में तमिलनाडु में चार दिन तक मनाया जाता है। पोंगल त्यौहार चार दिन का उत्सव है , यह हर एक दिन अलग अलग उत्सवों को चिन्हित करता है। जैसे:-
- पहला दिन को "भीगी उत्सव " कहा जाता है।
- दूसरा दिन को "थाई पोंगल " कहा जाता है।
- तीसरे दिन को "मट्टू पोंगल " कहा जाता है।
- चौथे दिन को "कन्नुम पोंगल " कहा जाता है।
- भीगी उत्सव :- पोंगल त्यौहार के पहले दिन को भीगी पोंगल कहते है जो देवराज इंद्र को समर्पित होता है। इसको भीगी पोंगल इसलिए कहते है क्योकि देवराज इंद्र भोग विलास में मस्त रहने वाले देवता मने जाते है। इस दिन संध्या समय में लोग अपने घर के पुराने कपड़े , कूड़ा आदि लाकर एक झगा इकट्ठा करके उसको जलते है। ऐसा करना भगवान के प्रति संम्मान और बुरायिओं की समाप्ति को दर्शाता है।
- थाई पोंगल :- दूसरी पोंगल थाई और सूर्य पोंगल कहलाती है , यह भगवान सूर्य को निवेदित है। इस दिन पोंगल नामक एक विशेष प्रकार की खीर बनाई जाती है, जो मिट्टी के बर्तन में नए धन से तैयार चावल , मुंग दाल , गुड़ से बनई जाती है। पोंगल नामक खीर तैयार होने के बाद सूर्य देव् की एक विशेष प्रकार से पूजा की जाती है और उनको प्रसाद के रूप में यह अपर्ण किया जाता है।
- मुट्टू पोंगल :- तीसरे दिन को मट्टू पोंगल कहते है। तमिल मान्यतों के अनुसार मट्टू भगवान् शंकर है जिसे के मूल के कारन भगवान् शंकर ने पृथ्वी पर रहकर मानव के लिए अन्न पैदा करने के लिए कहा। व तबसे पृथ्वी पर रहकर कृषि कार्य में मानव की सहायता कर रहा है। इस दिन किसान अपने बैलो को नहलाते है। व उनके सिंघो पर तेल लगते है और उनको सजाते है। बैलों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है और एक दिन उनके साथ गाये और बछड़े की पूजा की जाती है।
- कन्नुम पोंगल:- पोंगल के चौथे दिन को तिरुवल्लुर के नाम से जाना जाता है। इस दिन घरो को सम्पूर्ण तोर पैर सजाया जाता है इस दिन घर के दरवाज़े पर नारियल के पत्तो से सजाया जाता है व इस दिन महिलये अपने घर के मुख्य द्वार पर रंग बिरंगी रंगोली बनती है।
पोंगल त्यौहार के दिन नए कपड़े पहनते है इसी त्यौहार पैर बैलो को लड़ाया जाता है और यह एक बहुत प्रसिद्धं खेल है।
कारण:- हिन्दू पौराणकि कथाओं के अनुसार , भगवान शिव ने एक बार बैल को पृथ्वी पर आने और मानव को हर दिन तेल मालिश और स्नान कराने के लिए कहे। लेकिन बैल ने घोषणा की रोज़ खाओ और महीने में एक बार तेल से स्नान करो। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने बैल को हमेशा पृथ्वी पर रहने का श्राप दिया और कहा की बैलो को खेतो में हल चलना होगा तथा लोगो की अधिक भोजन उगने में मदद करनी होगी। यही कारण के लोग फसल कटाई के बाद फसलों और मवेशियों के साथ इस त्यौहार को मनाते है।